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EEDGAH, ईदगाह, EEDGAH, In Hindi, PART - II


EEDGAH PART - II

अमीना का दिल कचोट रहा है । गांव के बच्चे अपने-अपने बाप के साथ जा रहे हैं । हामिद का बाप अमीना के सिवा कौन है ! उसे कैसे अकेले मेले में जाने दे ? उस भीड़-भाड़ में बच्चा कहीं खो जाये तो क्या हो ? नहीं, अमीना उसे यों ना जाने देगी । नन्ही-सी जान !तीन कोस चलेगा कैसे ! पैर में छाले पड़ जाएंगे । जूता भी तो नहीं है । वह थोड़ी-थोड़ी दूर पर उसे गोद ले लेगी ; लेकिन यहां सेवैयाँ कौन पकाएगा ? पैसे होते तो लौटते-लौटते सब समाग्री जमा करके चटपट बना लेती । यह तो घंटो चीजे जमा करने में लगेंगे । मांगे हीं का तो भरोसा ठहरा । उस दिन फहीमन के कपड़े सिले थे  । आठ आने पैसे मिले थे । उस अठन्नी को ईमान के तरह बचाती चली आती थी इसी ईद के लिए, लेकिन कल ग्लावन सिर पर सवार हो गई तो क्या करती ! हामिद के लिए कुछ नहीं है, तो दो पैसे का दूध तो चाहिए । अब तो कुल दो पैसे हीं बच रहे हैं । तीन पैसे हामिद के जेब में, पाँच अमीना के बटवे में । यही तो बिसात है और ईद का त्यौहार, अल्लाह ही बड़ा पार लगाए । धोबन और नाइन और मेहतरानी और चुड़िहारिन सभी तो आएंगे । सभी को सेवैयाँ चाहिए और थोड़ा किसी की आँखों नहीं लगता ।किस-किस से मुँह चुराएगी । और मुँह क्यों चुराए ? साल भर का त्यौहार है । जिंदगी खैरियत से रहे, उनकी तक़दीर भी तो उन्ही के साथ है । बच्चे को खुदा सलामत रखे, दिन भी कट जायेंगे 
 गाँव से मेला चला । और बच्चो के साथ हामिद भी जा रहा था । कभी सब-के-सब दौड़ कर आगे निकल जाते । फिर किसी पेड़ के नीचे खड़े होकर साथवालों का इंतजार करते । यह लोग क्यों इतना धीरे-धीरे चल रहे हैं ! हामिद के पैरो में तो जैसे पर लग गए हो । वह कभी थक सकता है ! शहर का दामन आ गया । सड़क के दोनों ओर अमीरो के बगीचे हैं । पक्की चारदीवारी बनी हुई है । पेड़ो में आम और लीचियाँ लगी हुई है । कभी-कभी कोई लड़का कंकड़ी उठाकर आम पर निशाना लगाता है । माली अंदर से गली देता हुआ निकलता है । लड़के वहां से एक फर्लांग पर हैं ।  हँस रहे हैं । माली को कैसा उल्लू बनाया । बड़ी-बड़ी इमारते आने लगी । यह अदालत है, यह कॉलेज है, यह क्लब घर है ! इतने बड़े कॉलेज में कितने लड़के पढ़ते होंगे ? सब लड़के नहीं है जी !बड़े-बड़े आदमी हैं, सच ! उनकी बड़ी-बड़ी मूंछे हैं । इतने बड़े हो गए, अभी तक पढ़ने जाते हैं । न जाने कब तक पढ़ेंगे और क्या करेंगे इतना पढ़कर, हामिद के मदरसे में दो-तीन बड़े लड़के हैं, बिलकुल तीन कौड़ी के । रोज मार खाते हैं, काम से जी चुरानेवाले । इस जगह भी उसी तरह के लोग होंगे और क्या । क्लब-घर में जादू होता है । सुना है, यहाँ मुर्दे की खोपड़ियां दौड़ती हैं । और बड़े-बड़े तमाशे होते हैं, पर किसी को अंदर नहीं जाने देते । और यहाँ शाम को साहब लोग खेलते हैं । बड़े-बड़े आदमी खेलते हैं दाढ़ी-मूँछोंवाले । और मेमे भी खेलतीं हैं, सच ! हमारी अम्मा को वह दे दो, क्या नाम है, बैट, तो उसे पकड़ हीं न सकें । घुमाते हीं लुढ़क जाए 
महमूद ने कहा --- हमारी अम्मीजान का तो हाथ कापने लगे, अल्लाह कसम 
मोहसिन बोलै --- चलो, वो कई मन आटा पीस डालती हैं । जरा-सा बैट पकड़ लेंगी, तो हाथ कापने लगेगें ? सैकड़ो घड़े पानी रोज निकलती है । पांच घड़े तो तेरी भैंस पी जाती है । किसी मेम को एक घड़ा पानी भरना पड़  जाये तो उसके आँखों तले अंधेरा छा जाये 
महमूद --- लेकिन दौड़ती  तो नहीं, उछाल-कूद तो नहीं सकतीं 
मोहसिन --- हाँ, उछाल-कूद नहीं सकती, लेकिन उस दिन मेरी गाय खुल गई थी और चौधरी के खेतो में जा पड़ी थी,तो अम्मा इतना तेज दौड़ी कि मैं उन्हें न पा सका, सच 

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व्याख्या :-- अमीना अपनी कोठरी में बैठे अपनी बदकिस्मती के बारे में सोच-सोच कर दुखी और निराश हो रही होती है तभी हामिद बाहर से आकर कहता है अम्मा तुम डरना मत, मई सबसे पहले आऊंगा । अमीना को लगता है सभी बच्चे अपने-अपने बाप के साथ जा रहे हैं वह हामिद को अकेले कैसे जाने दे ? वह तीन कोस पैदल कैसे चलेगा ? उसके पास जूते भी नहीं है । घर की स्तिथि ठीक होती तो साथ ले जाती । पर्याप्त पैसे भी नहीं है ।धोबिन, नाइन और चुड़िहारिन सेवईयां माँगने आएँगी । फिर वह सोचती है बच्चे को बाँधकर रखना भी ठीक नहीं, दुःख के ये दिन भी निकल जाएंगे        

     


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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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