रहीम के दोहे |
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग |
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग || 1. ||
रहिमन प्रीति सराहिए, मिले होत रंग दून |
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून || 2.||
टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार |
रहिमन फिरि - फिरि पोइए, टूटे मुक्ताहार || 3. ||
रहिमन आँसूआ नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ |
जाहि निकारो गेह ते, कंस न भेद कहि देइ || 4. ||
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीती |
विपति - कसौटी जे कसे, तेही साँचे मीत || 5. ||
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन कौ मोह |
रहिमन मछरी नीर कौ, तऊुँ न छाँड़त छोह || 6. ||
दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय |
जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबंधु सम होय || 7. ||
प्रीतम छवि नैंननि बसी, पर छवि कहाँ समाय |
भरी सराय रहीम लखि,पथिक आपु फिरि जाय || 8. ||
रहीमन धागा प्रेम कौ, मत तोरेउ चटकाय |
टूटे ते फिरि न जुरै, जुरै गाँठ परि जाय || 9. ||
कदली, सीप, भुजंग- मुख, स्वाति एक गुन तीन |
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन || 10. ||
तरूवर फल नहीं खात हैं, सरवर पियहिं न पान |
कहि रहीम परकाज हित, संपति सँचहिं सुजान || 11. ||
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजै डारि |
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि || 12. ||
यों रहीम सुख होत है, बढ़त देख निज गोत |
ज्यों बड़री अँखिया निरखि, आँखिन को सुख होत || 13. ||
रहिमन ओछे नरन ते, तजौ बैर अरु प्रीत |
काटे-चाटे स्वान के, दुहूँ भाँति विपरीत || 14. ||
रहीम
रहीम का पूरा नाम अब्दुलरहीम खानखाना था | उनका जन्म सन 1556 ई 0 में लाहौर नगर ( जो अब पाकिस्तान में है | ) में हुआ था | ये अकबर के संरक्षक बैरमखाँ के पुत्र थें | अकबर ने बैरमखाँ को हज पर भेज दिया | मार्ग में उनके शत्रु ने उनका वध कर दिया | अकबर ने रहीम एवं उनकी माँ को अपने पास बुला लिया तथा दोनों की स्वयं देखभाल की तथा उनके भरण-पोषण का प्रबंध भी किया | अकबर ने हीं रहीम की शिक्षा का समुचित व्यवस्था की | रहीम अकबर के दरबार के नौ रत्नों में से थें | वे अकबर के प्रधान सेनापति और मंत्री भी थें | वे वीर योद्धा थें और बड़े कौशल से सेना का संचालन करते थें | उनकी दानशीलता की कई कहानियाँ प्रचलित है | सन 1627 ई0 में उनकी मृत्यु हो गयी |
कवी रहीम कई भाषाओँ के ज्ञाता थें - विशेष रूप से अरबी, तुर्की, फ़ारसी तथा संस्कृत के तो वे पंडित थें | ब्रज और अवधी दोनों भाषाओँ पर रहीम का समान अधिकार था | हिंदी काव्य के वे मर्मज्ञ थें और हिंदी कवियों का बड़ा सम्मान करते थें | गोस्वामी तुलसी दास से भी इनका परिचय तथा स्नेह-संबन्ध था |
'रहीम सतसई' , 'श्रृंगार सतसई' , 'मदनाष्टक' , 'रासपंचाध्यायी' , 'रहीम-रत्नावली' , तथा 'बरदै नायिका-भेद' आदि उनकी रचनाएँ हैं | उन्होंने फ़ारसी भाषा में भी ग्रंथों की रचना की हैं | उनकी रचनाओं का पूर्ण संग्रह 'रहीम-रत्नावली' के नाम से प्रकाशित हुआ है |
रहीम बड़े लोकप्रिय कवी थें | उनके नीति के दोहे तो सर्वसाधारण के जिह्वा पर रहते है | उनके दोहे में कोरी नीति की नीरसता नहीं है, उनमें मार्मिकता तथा कवि-ह्रदय की सच्ची संवेदना भी मिलती है | दैनिक जीवन की अनुभूतियों पर आधारित दृष्टांतो के माध्यम से उनका कथन सीधे ह्रदय पर चोट करता है | उनकी रचनाओं में नीति के अतिरिक्त भक्ति तथा श्रृंगार की भी सुन्दर व्यंजन हुई है |
रहीम जनसाधारण में अपने दोहे के लिए प्रसिद्ध हैं, पर उन्होंने कवित, सवैया, सोरठा, छप्पय तथा बरवै छंदो में भी सफल काव्य रचना की है | उनकी भाषा सरल, स्पष्ट तथा प्रभावपूर्ण है | उनकी सभी रचनाएँ मुक्तक शैली में है | उनकी शैली में सरसता, मधुरता, सरलता तथा बोधगम्यता है | रहीम के रचनाओं में श्रृंगार के संयोग एवं वियोग दोनों रूपों का सम्यक चित्रण हुआ है | हिंदी के मुसलमान कवियों में रहीम का विशिष्ट और महत्वपूर्ण स्थान है |
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