EEDGAH-- PART I
रमजान के पूरे तीस रोज के बाद ईद आई है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतो में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, मनो संसार को ईद की बधाई दे रहा हो । गांव में कितनी हलचल है । ईदगाह जाने की तैयारियां हो रही है । किसी के कुरते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर से सुई-धागा लेने दौड़ा जा रहा है । किसी के जुते कड़े हो गए हैं, उनमे तेल डालने के लिए तेली के घर भागा जाता है। जल्दी जल्दी बैलों को सनी-पानी दे दें । ईदगाह से लौटते - लौटते देर हो जायेगा । तीन कोस का पैदल रास्ता,फिर सैकड़ो आदमियों से मिलना-भेटना, दोपहर के पहले लौटना असंभव है।लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं ।किसी ने एक रोजा रखा है, वो भी दोपहर तक,किसी ने वो भी नहीं; लेकिन ईदगाह जाने की ख़ुशी उनके हिस्से की चीज है। रोजे बड़े - बूढ़ो के लिए होंगे । इनके लिए तो ईद है । रोज ईद का नाम रटते थे आज वह आ गई। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह क्यों नहीं चलते । इन्हे गृहस्थी की चिंताओं से क्या प्रयोजन ! सेवैयों के लिए दूध और शक्कर घर में है या नहीं, इनकी बला से, ये तो सेवैयाँ खाएँगे । वह क्या जाने की अब्बाजान क्यों बदहवास चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं । उन्हें क्या खबर कि चौधरी आज आँखे बदल ले, तो यह सारी ईद मोहर्रम हो जाए । उनकी अपनी जेबों में तो कुबेर का धन भरा हुआ है । बार - बार अपने जेब से खजाना निकाल कर गिनते हैं और खुश हो कर फिर रख लेते हैं । मेहमूद गिनता है एक - दो, दस - बारह ! उसके पास बारह पैसे हैं । मोहसिन के पास एक, दो, तीन, आठ, नौ, पन्द्रह पैसे हैं। इन्ही अनगिनती पैसो में अनगिनती चीजें लाएंगे - खिलौने, मिठाइयाँ, बिगुल न जाने क्या क्या ! आज सबसे ज्यादा प्रसन्न है हामिद । वह चार-पांच साल का गरीब - सूरत, दुबला - पतला लड़का, जिसका बाप गत वर्ष हैजे की भेंट चढ़ गया और माँ न जाने क्यों पीली होते होते एक दिन मर गई । किसी को पता न चला क्या बीमारी थी और कहती भी तो कौन सुननेवाला था । दिल पर जो कुछ भी बीतती थी, वह दिल में ही सहती थी और जब न सहा गया तो संसार से बिदा हो गई । अब हामिद अपने बूढी दादी अमीना के गोद में सोता है और उतना ही प्रसन्न है । उसके अब्बाजान रूपए कमाने गए हैं । बहुत-सी थैलियां लेकर आएँगे । अम्मीजान उसके लिए बड़ी अच्छी - अच्छी चीजें लेने अल्लाह के घर गई हैं । इसलिए हामिद प्रसन्न है । आशा तो बड़ी चीज है और फिर बच्चो की आशा ! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना देती है हामिद के पॉँव में जूते नहीं है, सिर पर एक पुरानी - धुरानी टोपी है, जिसका गोटा काला पड़ गया, फिर भी वह प्रसन्न है । जब उसके अब्बाजान थैलियाँ और अम्मीजान नियामतें लेकर आएंगी तो वह दिल के अरमान निकाल लेगा । तब देखेगा मोहसिन, मेहमूद, नूरे और सम्मी कहाँ से उतने पैसे निकालेंगे । अभागिन अमीना कोठरी में बैठी रो रही है । आज ईद का दिन है और उसके घर में दाना नहीं ! आज आबिद होता तो क्या इसी तरह ईद आती और चली जाती ! इस अंधकार में वह डूबी जा रही है किसने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को ? इस घर में उसका काम नहीं; लेकिन हामिद ! उसे किसी के मरने जीने से क्या मतलब ? उसके अंदर प्रकाश है, और बाहर आशा । विपत्ति अपना सारा दलबल लेकर आए, हामिद की आनंदभरी चितवन उसका विध्वंश कर देगी । हामिद भीतर जाकर दादी से कहता है --- तुम डरना मत अम्माँ, मैं सबसे पहले आऊँगा । बिलकुल न डरना । अमीना का दिल कचोट रहा है ..................................................--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कहानी अभी बाकि है दोस्तों। आप से सवाल है की कहानी के भाग को पढ़कर अपने क्या महसूस किया कमेंट कर बताएं। .............................................
Khani ek grib privaar ke halat ke bare me bta rhi hai..aasha kitni bdi chiz hai
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