समाज व्यक्ति और जन समूह, बहुलवादी परिप्रेक्ष्य
(Society Individual and Collectivities Plural Prespectives)
* समाज का समाजशास्त्रीय अर्थ
* समाज के प्रमुख आधार
* समाज के प्रमुख विषेशताएँ
* व्यक्ति और समाज
* व्यक्ति और जनसमूह
* समाज का बहुलवादी परिप्रेक्ष्य
साधारण अर्थ में ' समाज ' को कुछ व्यक्तियों का समूह समझा जाता है | जब हम हिन्दु समाज, मुस्लिम समाज, आर्य समाज आदि शब्दों का प्रयोग कर रहे होते हैं तब ' समाज ' के इसी साधारण अर्थ को व्यक्त कर रहे होते हैं | अधिकांश व्यक्ति ' समाज ' के इसी साधारण अर्थ - व्यक्तियों के समूह से परिचित हैं | ऐसा लगता है कि लगभग सभी व्यक्ति इस शब्द से इतना अधिक परिचित है कि वह इसकी गहराई में जाने का प्रयास नहीं करतें और न हीं समाज को समाजशास्त्रीय ढंग से समझने का प्रयास करते हैं क्योंकि समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है, इसलिए समाजशास्त्र के विधार्थी होने के नाते हम सभी को समाज के साधारण व समाजशास्त्रीय अर्थ को समझना होगा |
समाज का समाजशास्त्रीय अर्थ
Socialogical meaning of Society
समाजशास्त्र में ' समाज ' का अर्थ व्यक्तियों का समूह न हो कर संबंधों की व्यवस्था अथवा सबंधों के जाल (Web of relatinonship) से है | मैकाइवर और पेज का कहना है, "समाज, सामाजिक संबंधों का जाल है |" संबंधों का जाल क्या है? हम सब सामाजिक प्राणी हैं, विभिन्न क्षेत्रों में हमे अपनी आवश्यकताएँ पूरी करनी पड़ती है और विभिन्न व्यक्तियों से विभिन्न प्रकार के सम्बन्ध स्थापित करने पड़ते हैं | संबंधों के इसी ताने-बाने को संबंधों का जाल कहा जाता है |
मैकाइवर और पेज के अनुसार, " समाज रीतियों, कार्यप्रणालीयों, अधिकार एवं पारस्परिक सहयोग, अनेक समूह और उनके विभागों, मानव व्यवहार के नियंत्रणों और स्वतंत्रताओं की व्यवस्था है | "
समाज के प्रमुख आधार
( Main bases of society)
मैकाइवर की परिभाषा के आधार पर समाज के प्रमुख आधारों को निम्न क्रम से समझा जा सकता है -
(1) रीतियाँ - समाज के वे स्वीकृत तरीकें हैं जिन्हें समाज व्यवहार के क्षेत्र में उचित समझता है | प्रत्येक समाज में कुछ विशेष प्रकार की रीतियाँ पाई जाती है | ये रीतियाँ खान-पान, बोलचाल, धर्म-विवाह आदि अनेक क्षेत्रों से सम्बंधित रहती हैं | रीतियाँ समाज के व्यक्तियों को प्रभावित करतीं हैं और उन्हें निश्चित करने के लिए बाध्य करतीं हैं |
(2) कार्य-प्रणालियाँ - कार्य-प्रणालियों का अभिप्राय संस्थाओं से है क्योंकि संस्थाओं में सामूहिक काम करने की सर्वोत्तम प्रणालियाँ होती हैं | समाज के सदस्यों से यह आशा की जाती है कि वे प्रचलित कार्य-प्रणालियों के द्वारा हीं अपने कार्यों को पूरा करेंगें |
(3) अधिकार - अधिकार सामाजिक सम्बन्धो को व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण हैं | अधिकार के प्रति व्यक्ति सजग रहतें हैं | अधिकार की धारणा समाज के सभी संगठनों में पाई जाती है : जैसे परिवार में कर्ता,स्कूल और कॉलेजों में प्रधानाचार्य और कार्यालयों में अधिकारी | आधुनिक समाजों में अधिकार का रूप पर्याप्त जटिल व विस्तृत हो गया है; वह कार्यपालिका आदि संगठनों में वितरित हो गया है |
(4) पारस्परिक सहयोग - समाज का स्थायित्व पारस्परिक सहयोग पर आधारित है पारस्परिक सहयोग में वृद्धि होने पर समाज विकसित होता है, इसका रूप निखरता है जबकि इसके विपरीत स्थिति होने पर सामाजिक सम्बन्ध छिन्न-भिन्न हो जातें हैं | सहयोग के साथ संघर्ष भी समाज में विद्यमान रहता है परन्तु संघर्ष गौण है और सहयोग प्रधान है |
(5) समूह और विभाग - समाज एक अखंड व्यवस्था नहीं है वरन इसके अनेकों उपविभाग हैं | समाज के अंतर्गत गाँव, नगर, जिला, परिवार, पड़ोस, राष्ट्र आदि सभी आ जाते हैं और आपस में सम्बद्ध रहकर समाज को व्यवस्थित करतें हैं | इनमें प्रत्येक विभाग व समूह हमारे संबंधों को प्रभावित करतें हैं |
(6) मानव व्यवहार का नियंत्रण - यदि मानव व्यवहार पर नियंत्रण न रखा जाए तो समाज में विघटन, विद्रोह, अशांति, अव्यवस्था आदि परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं | यही कारण है कि प्रत्येक समाज में मानव व्यवहार के नियंत्रणों का अस्तित्व रहता है | नियंत्रणो को न मानने पर दंड या अपमान मिलता है | वैसे समाज में औपचारिक (Formal) और अनौपचारिक (Informal) दोनों प्रकार के नियंत्रणो द्वारा व्यवस्था बनाई जाती है | औपचारिक नियंत्रणों में कानून, प्रचार, पुलिस आदि आ जातें है और अनौपचारिक के अंतर्गत धर्म, रीति, रिवाज , परम्पराएं आदि आ जातें हैं |
(7) स्वतंत्रता - नियंत्रण के साथ-साथ स्वतंत्रता भी समाज के लिए आवश्यक है | यदि व्यक्तियों पर नियंत्रण के द्वारा केवल कर्तव्यों का हीं बोझ लाद दिया जाए तो ऐसी स्थिति में वे अपने परिस्थितियों को अधिक बेहतर नहीं बना सकेंगें | सामाजिक संबंधों के विकसित व्यवस्था के लिए स्वतंत्रताओं की आवश्यकता है | स्वतन्त्र विचार-विमर्श के द्वारा हीं समाज को एक नया रूप प्रदान किया जा सकता है और सामाजिक जीवन को अधिका-अधिक संगठित,व्यवस्थित व् उपयोगी बनाया जा सकता है |
मैकाइवर और पेज के द्वारा प्रस्तुत समाज के आधार सामाजिक संबंधों के ताने-बाने या जाल को हीं निश्चित रूप प्रदान करने में सहायक हैं | ये विभिन्न आधार सामाजिक सम्बन्धों की हीं विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं |
सम्बंधित सवाल आप कॉमेंट कर पूछ सकते हैं |
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
Thanku For comment