संविधान क्यों और कैसे ?
Chapter -1
(झ) संविधान के प्रचलन में लाने का तरीका
(ट) संविधान के मौलिक प्रावधान
(ठ) संस्थाओं की संतुलित रूप रेखा
संविधान को प्रचलन में लाने का तरीका
इसका तात्पर्य यह है की कोई संविधान कैसे अस्तित्व में आया ;संविधान को किसने बनाया और उनके पास इसे बनाने की कितनी शक्ति थी ? कई देशों में संविधान इसलिए निष्प्रभावी होते हैं क्योंकि उनका निर्माण सैनिक शासको अथवा ऐसे अलोकप्रिय नेताओं के द्वारा होता है जिनके पास लोगों को अपने साथ लेकर चलने की क्षमता नहीं होती | विश्व में सर्वाधिक सफल संविधान भारत, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के हैं | इन देशों के संविधान ऐसे देशों के संविधान हैं जिन्हें एक सफल राष्ट्रीय आंदोलन के बाद बनाया गया | भारतीय संविधान भारत के एक संविधान सभा द्वारा 1946 से 1949 के मध्य बनाया गया ऐसा करते हुए संविधान सभा ने राष्ट्रीय आंदोलन के लम्बे इतिहास से काफी प्रेरणा ली | राष्ट्रीय आंदोलन में समाज के सभी वर्गों को एक साथ लेकर चलने की विलक्षण क्षमता थी | संविधान को भरी वैधता मिली क्योंकि ऐसे लोगो ने इसका निर्माण किया जिनमे समाज का अटूट विश्वास था और जिनके पास समाज के विभिन्न वर्गो से सीधा संवाद करने और उनका सम्मान पाने की क्षमता थी | संविधान निर्माता लोगों को यह समझने में सफल रहे कि संविधान उनके व्यक्तिगत शक्तियों को बढ़ाने का कोई साधन नहीं है | यही कारण है कि संविधान को भारी वैधता मिली | संविधान का अंतिम प्रारूप उस समय की व्यापक राष्ट्रीय आम सहमति को व्यक्त करता है |
कुछ देशों ने अपने संविधान पर पूर्ण जनमत संग्रह कराया जिसमे लोग अपनाए जा रहे संविधान के पक्ष या विपक्ष में अपनी राय देतें हैं | भारतीय संविधान पर ऐसा कोई जनमत संग्रह नहीं हुआ | परन्तु इसे लोगो की ओर से ढृढ़ शक्ति प्राप्त थी क्योंकि यह बहुत हीं लोकप्रिय नेताओं की सहमति और समर्थन पर आधारित था | इसी कारण लोगों ने इसके प्रावधानों पर अमल करके इसे अपना लिया | अतः संविधान बनाने वालों का प्रभाव भी एक सीमा तक संविधान की सफलता को सुनिश्चित करता है |
संविधान के मौलिक प्रावधान
एक सफल संविधान की यह विशेषता है कि वह देश के प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के प्रावधानों का आदर करने का कोई न कोई कारण अवश्य देता है | उदाहरण के लिए यदि किसी देश के संविधान में बहुसंख्यकों को समाज के अल्पसंख्यक समूहों का उत्पीड़न करने की अनुमति दी गई हो, तो वहां अल्पसंख्यको के पास ऐसा कोई कारण नहीं होगा कि वे संविधान के प्रावधानों का आदर करें | यदि कोई संविधान अन्य लोगों की तुलना में कुछ लोगों को अधिक सुविधाएँ प्रदान करता है या सुनियोजित ढंग से समाज के छोटे-छोटे समूहों की शक्ति को और भी मजबूत करता है तो उसे जनता की विश्वास मिलना बंद हो जाएगा | यदि कोई समूह यह महसूस करे कि उसकी ' पहचान ' को संविधान के द्वारा दबाया जा रहा है तो उसके पास संविधान के मानने का कोई कारण नहीं होगा | किसी भी देश का संविधान स्वंय न्याय के आदर्श स्वरूप की स्थापना नहीं करता परन्तु उसे लोगों को विश्वास दिलाना पड़ता है कि वह आधारभूत न्याय को प्राप्त करने के लिए ढाँचा उपलब्ध कराता है |
आप इस विचार को प्रयोग में लाएँ | स्वंय अपने से यह प्रश्न कीजिए : समाज के कुछ आधारभूत नियमों में ऐसी कौन सी बात होनी चाहिए जिनमे सभी लोगों को उन्हें मानाने का एक कारण अवश्य मिल सके ?
कोई भी संविधान अपने सभी नागरिको की स्वतंत्रता और समानता की जितना अधिक सुरक्षा प्रदान करता है उसकी सफलता की संभावना उतनी अधिक हो जाता है | क्या भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को एक न एक ऐसा कारण प्रदान करता है जिससे वह उसकी सामान्य रुपरेखा का समर्थन कर सके ? इन सभी बातों के अध्ययन के बाद आप ' हाँ ' में उत्तर देने की स्थिति में होंगे |
नेपाल का संविधान
निर्माण का विवाद
संविधान बनाना कोई आसान और सरल कार्य नहीं है | संविधान बनाना एक जटिल प्रक्रिया है और इसका उदहारण नेपाल है | 1948 के बाद से नेपाल में पांच बार संविधान बनाये जा चुके हैं : 1948, 1951, 1959, 1962, और 1990 में | 1990 में नेपाल के संविधान में बहु-दलिये लोकतंत्र प्रारम्भ किया गया परन्तु अनेक क्षेत्रों में वहाँ के नरेश के पास अंतिम शक्तियाँ बनी रहीं | पिछले दस सालों में नेपाल में देश की सरकार और राजनीति की पुनर्संरचना के लिए सशस्त्र राजनीति आंदोलन चल रहा था | आंदोलन का प्रमुख मुददा यह था कि संविधान में राजा की भूमिका क्या होनी चाहिए | नेपाल के कुछ समूह राजतन्त्र नामक संस्था को हीं समाप्त करने तथा नेपाल में गणतांत्रिक सरकार की स्थापना करने के पक्ष में थें | परन्तु कुछ लोगो का कहना था की राजा की सीमित भूमिका के साथ संवैधानिक राजतंत्र का बना रहना उपयोगी होगा | स्वयं राजा भी शक्तियों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था | अक्टूबर 2002 में राजा ने समस्त शक्तियों को अपने हाथ में ले लिया |
बहुत सारे राजनीतिक दल और संगठन एक नई संविधान सभा की माँग कर रहे थे | जनता द्वारा चुनी गई संविधान सभा के संघर्ष में नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी ( माओवादी ) सबसे आगे थी | अंत में जन आंदोलन के दबाव के सामने झुकते हुए राजा को एक ऐसी सरकार बनवानी पड़ी जो आंदोलनकारी दलों को मान्य थी | इस सरकार ने राजा की लगभग सभी शक्तियाँ छीन ली | अब सभी पक्ष यह तय करने की कोशिश कर रहे है कि एक संविधान सभा का निर्माण किस प्रकार होगा |
संघ या राज्यों की सरकार के कर्मचरियों द्वारा सैन्य कानून के दौरान या कानून-व्यवस्था को बनाये रखने के लिए कुछ कार्य किये जाते है | अनुच्छेद 33 और 34 संसद को यह अधिकार प्रदान करता है कि ऐसे कार्यो के लिए वह कर्मचारियों का संरक्षण कर सके | यह प्रावधान संघ सरकार की शक्ति को और भी बढ़ा देता है | सैन्य बल विशेष शक्ति कानून ( आर्म्स फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट ) इन्हीं प्रावधानों के आधार पर बना है | कई मौकों पर इस कानून के कारण लोगों तथा सैन्य बलों के बीच तनाव उत्पन्न हो चूका है |
संस्थाओं की संतुलित रुपरेखा
संविधान को देश की जनता नहीं प्रायः एक छोटा समूह हीं नष्ट कर देता है क्योंकि वह अपनी शक्तियाँ बढ़ाना चाहता है | सही ढंग से बनाये संविधान में शक्तियों का बँटवारा इस प्रकार कर दिया जाता है जिससे कोई एक समूह संविधान को नष्ट न कार सके | संविधान की रूपरेखा बनाने की एक कारगर विधि यह सुनिश्चित करना है कि किसी एक संस्था का सम्पूर्ण शक्तियों पर एकाधिकार न हो | इसके लिए शक्ति को कई संस्थाओं में बाँट दिया जाता है | उदहारण के लिए भारतीय संविधान शक्ति को एक समान धरातल पर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसी संस्थाओं तथा स्वतंत्र संवैधानिक निकाय जैसे निर्वाचन आयोग आदि में बाँट देता है | शक्तियों का इस प्रकार से बँटवारा यह सुनिश्चित करता है कि यदि कोई एक संस्था संविधान को नष्ट करना भी चाहे तो अन्य दूसरी संस्थाएं उसके अतिक्रमण को नियंत्रित कर लेगी | अवरोध और संतुलन के कुशल प्रयोग ने भारतीय संविधान की सफलता सुनिश्चित की है |
संविधान के रुपरेखा बनाने में इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि उसमे बाध्यकारी मूल्य, नियम और प्रक्रियाओं के साथ अपनी कार्यप्रणाली में लचीलापन का संतुलन भी होना चाहिए जिससे वह बदलती आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुकूल अपने आप को परिवर्तित कर सके | अधिक कठोर संविधान परिवर्तन के दबाव में नष्ट हो जाते हैं और दूसरी ओर, यदि संविधान अत्यधिक लचीला है तो वह समाज को सुरक्षा और पहचान देने में असमर्थ रहेगा | प्रमुख मूल्यों की रक्षा करने और नई परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढलने में एक संतुलन बनाए रखना एक सफल संविधान की विशेषता है | नवें अध्याय में ( संविधान : एक जीवंत दस्तावेज ) में आप भारतीय संविधान निर्माताओं की समझदारी को महसूस करेंगे जिसमें भारतीय संविधान को एक जीवंत दस्तावेज की संज्ञा दी गये है | अपने प्रावधानों में परिवर्तन की संभावना और एक हद तक ठोस रूप में संतुलन बनाकर संविधान सुनिश्चित करता है की वह दीर्घायु होगा और जनता का आदर प्राप्त करेगा | इस प्रकार की व्यवस्था यह भी सुनिश्चित करती है कि कोई भी वर्ग या समूह अपने बल-बूते पर संविधान को नष्ट नहीं कर सकेगा |
क्या किसी संविधान की सत्ता मान्य है, यह पता लगाने के लिए आप स्वयं से तीन सवाल पूछ सकते हैं :
* जिन लोगों ने संविधान बनाया क्या वे विश्वसनीय थे ? इस प्रश्न का उत्तर इसी अध्याय में आगे मिलेगा |
* दूसरा, क्या संविधान ने यह सुनिश्चित किया था कि सूझ-बूझ के साथ शक्ति को इस प्रकार संगठित किया जाए कि किसी एक समूह के द्वारा संविधान को नष्ट करना आसान कार्य न हो ? और, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या संविधान सबको कुछ ऐसे कारण देता है कि वे संविधान का पालन करें ? इस पुस्तक के अधिकांश भागोंमें इस प्रश्न का उत्तर दिया गया है |
* क्या संविधान लोगों की आकाँक्षाओं और आशाओं का पिटारा है ? संविधान मे लोगों का विश्वाश होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि संविधान न्यायपूर्ण है या नहीं | भारतीय संविधान में न्याय के आधारभूत सिद्धांत क्या है ? इस प्रश्न का उत्त्तर आपको इस पुस्तक का अंतिम अध्याय देगा |
सम्बंधित सवाल आप कॉमेंट कर पूछ सकते हैं |
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