संविधान क्यों और कैसे ?
Chapter - 1
(ड) भारतीय संविधान कैसे बना
(ढ़) संविधान सभा का स्वरुप
(त) संविधान सभा के कामकाज की शैली
भारतीय संविधान कैसे बना
आइए देखें की भारतीय संविधान का निर्माण कैसे हुआ | औपचारिक रूप से संविधान का निर्माण एक संविधान सभा ने किया जिसे अविभाजित भारत में निर्वाचित किया गया था | संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर 1946 को हुई और फिर 14 अगस्त 1947 को विभाजित भारत के संविधान सभा के रूप मे इसकी पुनः बैठक हुई | संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव 1935 में स्थापित प्रांतीय विधान सभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से हुआ | संविधान सभा का गठन लगभग ब्रिटिश मंत्रिमंडल की एक समिति - ' कैबिनेट मिशन ' द्वारा प्रस्तावित योजना के अनुसार हुई |
इस योजना के अनुसार -
* प्रत्येक प्रान्त, देशी रियासत या रियासतों के समूह को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें प्रदान की गई | मोटे तौर पर दस लाख के जनसंख्या पर एक सीट का अनुपात रखा गया | परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार के प्रत्यक्ष शासन वाले प्रांतो को 292 सदस्य चुनने थे तथा देशी रियासतों को 93 सीटें आवंटित की गई |
* प्रत्येक प्रान्त की सीटों को तीन प्रमुख समुदायों- मुस्लमान, सिख और सामान्य, में उनकी जनसंख्या के अनुपात में बाँट दिया गया |
* प्रांतीय विधान सभाओं में प्रत्येक समुदाय के सदस्यों ने समानुपातिक प्रतिनिधित्व और एकल संक्रमण मत पद्धति का प्रयोग कर अपने प्रतिनिधियों को चुना |
* देशी रियासतों के प्रतिनिधियों के चुनाव का तरीका उनके परामर्श से निश्चित किया गया | अध्याय के पिछले भागों में उन तीन तरीकों पर प्रकाश डाला गया एवं अध्ययन किया गया जो संविधान को प्रभावी और सम्मान के योग्य बनातें हैं | भारतीय संविधान इस परीक्षा में किस हद तक कामयाब होता है ?
* ब्रिटिश प्रान्त ( Provinces) - यहाँ प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेज शासन करते थे | सारे कानून बनाते थे, प्रान्त पर पूर्ण रूप से उनका नियंत्रण होता था |
* देशी रियासत ( Princely States ) - देशी रियासतों में वहाँ के राजा शासन करते थे, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से इन पर ब्रिटिश अधिकारीयों का नियंत्रण होता था |
संविधान सभा का स्वरूप
विभाजन के बाद 3 जून 1947 की योजना के अनुसार वे सभी प्रतिनिधि संविधान सभा के प्रतिनिधि नहीं रहें जो पाकिस्तान के क्षेत्रों से चुनकर आये थे | संविधान सभा के वास्तविक सदस्यों की संख्या घटकर 299 रह गई |
विभाजन के बाद 3 जून 1947 की योजना के अनुसार वे सभी प्रतिनिधि संविधान सभा के प्रतिनिधि नहीं रहें जो पाकिस्तान के क्षेत्रों से चुनकर आये थे | संविधान सभा के वास्तविक सदस्यों की संख्या घटकर 299 रह गई |
इनमे से 26 नवंबर, 1949 को कुल 284 सदस्य उपस्थित थें | अंतिम रूप से पारित संविधान पर इन्हीं 284 सदस्यों ने अपने हस्ताक्षर किये |
इस प्रकार इस उपमहाद्वीप में विभाजन से उपजी विभीषिका और हिंसा के बीच संविधान निर्माण का कार्य हुआ | संविधान निर्माताओं के धैर्य की प्रशंसा करनी पड़ेगी क्योंकि उन्होंने न केवल अत्यधिक दबाव में एक संविधान बनाया बल्कि विभाजन के कारण हुई अकल्पनीय हिंसा से सही सिख भी ली | भारत के संविधान ने नागरिकता की एक नई अवधारणा प्रस्तुत की | भारतीय संविधान के अंतर्गत अल्पसंख्यक न केवल सुरक्षित होंगे बल्कि धार्मिक पहचान का नागरिक अधिकारों पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा |
परन्तु संविधान सभा के गठन का यह विवरण केवल सतही तौर पर हीं हमे बताता है कि संविधान वास्तव में बना कैसे | यद्धपि हमारे संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार के आधार पर नहीं हुआ था परन्तु उसे अधिक से अधिक प्रतिनिधिपरक बनाने के गंभीर प्रयास किया गया | ऊपर बताई गयी विधि से सभी धर्मों के सदस्यों को प्रतिनिधित्व दिया गया | इसके अतिरिक्त संविधान सभा में उस समय के ' अनुसूचित वर्गों ' के छब्बीस सदस्य थें | जहाँ तक राजनीतिक दलों का प्रश्न है विभाजन के बाद संविधान सभा में कांग्रेस का वर्चस्व था और उसे 82 प्रतिशत सीटें प्राप्त थी | परन्तु कांग्रेस स्वयं विविधताओं से भरी हुई एक पार्टी थी जिसमे लगभग सभी विचारधाराओं की सहभागिता थी |
आस्था के प्रतिक
संविधान सभा के अस्तित्व में आने से बहुत पूर्व ऐसी संविधान सभा की मांग उठ चुकी थी | इसकी प्रतिध्वनि हम संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ 0 राजेंद्र प्रसाद के 9 दिसम्बर, 1946 के अध्यक्षीय भाषण में सुन सकते हैं | महात्मा गाँधी के कथन को याद करते हुए डॉ 0 राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि स्वराज का अर्थ है जनता के द्वारा स्वतंत्र रूप से चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से व्यक्त उनकी इच्छा | उन्होंने "....... देश में राजनीतिक रूप से जागरूक सभी वर्गों में संविधान सभा का विचार आस्था का प्रतिक बन चूका था | "
संविधान सभा के काम काज की शैली
संविधान सभा की सत्ता केवल इस बात पर हीं नहीं टिकी थी कि वह मोटे तौर पर ( हालंकि पूर्ण रूप से नहीं ) सबका प्रतिनिधित्व कर रही थी | संविधान के निर्माण के लिए अपनायी गई प्रक्रिया और सदस्यों के विचार विमर्श की जड़ में छुपे हुए मूल्यों में हीं संविधान सभा की लोकप्रिय सत्ता का आधार था | जहाँ प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली किसी भी सभा के लिए आवश्यक है कि उसमे समाज के विभिन्न वर्गों की सहभागिता हो वहीं यह भी महत्वपूर्ण है कि केवल अपनी पहचान या समुदाय का ही प्रतिनिधित्व न करें | संविधान सभा के सदस्यों ने पुरे देश के हित को ध्यान में रखकर विचार विमर्श किया | सदस्यों के बीच प्रायः मतभेद हो जाते थें लेकिन सदस्यों द्वारा अपने हितों का आधार बनाकर शायद ही कोई मतभेद हुआ हो |
वास्तव में ये मतभेद वैध सैद्धांतिक आधार पर थे | हालांकि संविधान सभा में अनेक मतभेद थे : जैसे -भारत में शासन प्रणाली केंद्रीकृत होनी चाहिए या विकेन्द्रीकृत ? विभिन्न राज्यों के बीच किस प्रकार के सम्बन्ध होने चाहिए ? न्यायपालिका की क्या शक्तियां होनी चाहिए ? संविधान को सम्पत्ति की रक्षा करनी चाहिए अथवा नहीं ? लगभग उन सभी विषयों पर गहराई से वाद विवाद हुआ जो आधुनिक राज्य के आधार हैं | संविधान का केवल एक हीं प्रावधान ऐसा है जो लगभग बिना किसी वाद विवाद के पास हो गया | यह प्रावधान सार्वभौमिक मताधिकार का था | सार्वभौमिक मताधिकार का अर्थ है कि धर्म, जाति, शिक्षा, लिंग और आय के आधार पर बिना किसी भेदभाव के सभी नागरिकों को एक निश्चित आयु प्राप्त करने पर वोट देने का अधिकार होगा | संविधान सभा के सदस्यों ने इस पर वाद विवाद आवश्यक नहीं माना लेकिन इसके अतिरिक्त प्रत्येक विषय पर गंभीर विचार विमर्श और वाद विवाद हुए |
संविधान सभा के लोकतान्त्रिक मूल्यों के प्रति विश्वास का इससे बढ़िया व्यवहारिक रूप कुछ और नहीं हो सकता था |
वास्तव में संविधान सभा को ताकत इस बात से मिल रहीं थी की वह सार्वजनिक हित का काम कर रही थी | इसके सदस्यों ने चर्चा और तर्कपूर्ण बहसों पर काफी जोर दिया | उन्होंने कभी भी केवल अपने हितों की बात नहीं की बल्कि अपनी सोंच और फैसले के पक्ष में अन्य सदस्यों को सैद्धांतिक कारण भी दिये | अपनी सोच के पक्ष में दूसरों से तर्कपूर्ण संवाद हमें स्वार्थ या संकीर्णता से ऊपर उठा देता है | संविधान सभा में हुई चर्चा और वाद विवाद कई मोटे - मोटे खंडो में प्रकाशित हुई है तथा हर अनुच्छेद को लेकर जितनी विस्तृत और बारीकी से बातचीत हुई है वह सार्वजनिक विवेक की भावना को सबसे प्रामाणिक ढंग से सामने लती है | संविधान निर्माण के मुद्दे पर हुई ये बहसें भी फ़्रांसिसी और अमेरिकी क्रांति के समान संविधान निर्माण के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण और यादगार अध्यायों में से है |
सिद्धांत - ' सिद्धि का अंत ' है | यह वह धारणा है जिसे सिद्ध करने के लिए जो कुछ हमे करना था वह हो चूका है, और अब स्थिर मत अपनाने का समय आ गया है | धर्म, विज्ञान, दर्शन, नीति, राजनीति सभी सिद्धांत की अपेक्षा करते हैं |
वैध - प्रामाणिक
सत्ता - शक्ति +वैधता, अर्थात वह शक्ति जो जनता के द्वारा प्रमाणित हो |
सम्बंधित सवाल आप कॉमेंट कर पूछ सकते हैं |
Thanku for information
जवाब देंहटाएंThanku for the Information
जवाब देंहटाएंNice
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