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संविधान सभा की कार्यविधि, संविधान क्यों और कैसे ? Constitution Why and How , in hindi Part VI

 संविधान क्यों और कैसे ?

Chapter-1

(थ) कार्यविधि 

(द) राष्ट्रीय आंदोलनके विरासत 

(ध) संस्थागत व्यवस्थाएँ 


  कार्यविधि 

संविधान सभा की सामान्य कार्यविधि में भी सार्वजानिक विवेक का महत्व स्पष्ट दिखाई पड़ता था | विभिन्न मुद्दों के लिए संविधान सभा के आठ मुख्य कमेटियां थीं | जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना आजाद या भीम राव अंबेडकर इन कमेटियों की अध्यक्षता करते थें |  ये सभी ऐसे लोग थें जिनके विचार हर बात पर एक दूसरे से भिन्न थे | आंबेडकर कॉंग्रेस और गाँधी के कड़े आलोचक थें तथा उन पर अनुसूचित जातियों के उथान के लिए पर्याप्त काम नहीं करने का आरोप लगते थें | सरदार वल्लभ भाई पटेल और नेहरू जी भी बहुत - मुद्दों पर एक दूसरे से सहमत नहीं थें | इन सबके बावजूद सबने मिलकर एक साथ काम किया | प्रत्येक कमेटी ने आम तौर पर संविधान के कुछ-कुछ प्रावधानों का प्रारूप तैयार किया जिन पर बाद में पूरी संविधान सभा में चर्चा की गई | सामान्तया यह प्रयास किया गया कि फैसला आम सहमति से हो तथा कोई भी प्रावधान किसी खास हित समूह के पक्ष में न हो | कई प्रावधानों का निर्णय मत विभाजन करके भी लिए गए | ऐसे अवसरों पर भी सभी के हित का ध्यान रखा गया | हर तर्क और शंका का समाधान बहुत हीं सावधानी से किया गया | लिखित रूप में उनका जवाब दिया गया | संविधान के निर्माण में दो वर्ष और ग्यारह महीनें लगें | इस अवधि में संविधान सभा की बैठक 166 दिनों तक चली | इसके सत्र,  अख़बारों और आम लोगों के लिए खुले हुए थे | |

राष्ट्रीय आंदोलन के विरासत

    कोई भी संविधान केवल अपनी संविधान सभा के बल पर हीं नहीं बनता| भारत की संविधान सभा इतनी विविधतापूर्ण थी कि वह सामान्य ढंग से काम नहीं कर सकती थी यदि इसके पीछे उन सिद्धांतों की आम सहमति न होती जिन्हें संविधान में रखा जाता था | इन सिद्धांतों पर स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सहमति बनी एक प्रकार से संविधान सभा केवल इन सिद्धांतों को मूर्त रूप और आकार दे रही थी जो उसने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान बनाए थे | संविधान लागु होने के कई दशक पहले से हीं राष्ट्रीय आंदोलन में उन बातों की चर्चा हुई थी जो संविधान बनाने से सम्बंधित थे,  जैसे - भारत में सरकार का स्वरूप और संरचना किस प्रकार की होनी चाहिए, हमे किन मूल्यों का समर्थन करना चाहिए,किन असमानताओं को दूर किया जाना चाहिए आदि ? राष्ट्रीय आंदोलन में इन प्रश्नों पर हुए वाद विवाद से प्राप्त निष्कर्षों को हीं संविधान में अंतिम रूप प्रदान किया गया | 

    जिन सिद्धांतों को राष्ट्रीय आंदोलन से संविधान सभा में लाया गया उसका सबसे अच्छा सारांश हमे नेहरू जी द्वारा 1946 में प्रस्तुत ' उद्देश्य  प्रस्ताव ' में मिलता है | इस उद्देश्य प्रस्ताव में संविधान सभा के उद्देश्यों को परिभाषित किया गया था | इस प्रस्ताव में संविधान की सभी आकांक्षाओं और मूल्यों को समाहित किया गया था | पिछले भाग में जिसे संविधान के मौलिक प्रावधान कहा गया था वास्तव में वह उद्देश्य-प्रस्ताव में समाहित मूल्यों से प्रेरित और उनका सारांश है | इसी उद्देश्य-प्रस्ताव के आधार पर हमारे संविधान में समानता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र सम्प्रभुता और एक सार्वजनिक पहचान जैसी बुनियादी प्रतिबद्धताओं को संस्थागत स्वरूप दिया गया | इस प्रकार हमारा संविधान केवल नियमों और प्रक्रियाओं की भूलभुलैया नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी सरकार बनाने की नैतिक प्रतिबद्धता है जो राष्ट्रीय आंदोलन में लोगो को दिए गए आश्वासनों को पूरा करेगी |

उद्देश्य प्रस्ताव के मुख्य बिंदु 

*    भारत एक स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य है ;

*    भारत ब्रिटेन के अधिकार में आने वाले भारतीय क्षेत्रों, देशी रियासतों और देशी रियासतों के बाहर के ऐसे क्षेत्र          जो हमारे संघ का अंग बनना चाहतें है, का एक संघ होगा |
 
*    संघ की इकाइयाँ स्वायत होंगी और उन सभी शक्तियों का प्रयोग और कार्यों का सम्पादन करेंगी जो संघीय          सरकार को नहीं दी गई |

*   संप्रभु और स्वतंत्र भारत तथा इसके संविधान की समस्त शक्तियों का स्रोत जनता है | 

*    भारत के सभी लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय; कानून के समक्ष समानता; प्रतिष्ठा             और अवसर की समानता  तथा कानून और सार्वजानिक नैतिकता की सीमाओं में रहते हुए भाषण,                      अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, उपासना, व्यवसाय, संगठन और कार्य करने की मौलिक स्वतंत्रता की गारंटी *          और सुरक्षा दी जयेगी |

*    अल्पसंख्यकों, पिछड़े व् जनजातीय क्षेत्र, दलित व् अन्य पिछड़े वर्गों को समुचित सुरक्षा दी जाएगी | 

*    गणराज्य की क्षेत्रीय अखंडता तथा थल, जल और आकाश में इसके संप्रभु अधिकारों की रक्षा सभ्य राष्ट्रों के         कानून और न्याय के अनुसार की जाएगी |

*    विश्व शांति और मानव कल्याण के विकास के लिए देश स्वेच्छापूर्वक और पूर्ण योगदान करेगा |  
    
 

संस्थागत व्यवस्थाएँ  

 संविधान को प्रभावी बनाने का तीसरा तरीका यह है कि सरकार की सभी संस्थाओं को संतुलित ढंग से व्यवस्थित किया जाये | संविधान सभा में मूल सिद्धांत यह रखा गया कि सरकार लोकतांत्रिक रहे और जनकल्याण के लिए प्रतिबद्ध हो | संविधान सभा ने शासन के तीन अंगो - विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका - के बीच समुचित संतुलन स्थापित करने के लिए बहुत विचार - विमर्श किया | संविधान सभा ने संसदीय शासन व्यवस्था और संघात्मक व्यवस्था को स्वीकार किया जो एक ओर विधायिका और कार्यपालिका के बीच तथा दूसरी ओर केंद्रीय सरकार और राज्यों के बीच शकतोयों का वितरण करती है | 

    शासन के तीन अंगो के बीच सर्वाधिक संतुलन स्थापित करने के लिए हमारे संविधान निर्माताओं ने दूसरे देशों के प्रयोगों और अनुभवों से कुछ भी सिखने में कोई संकोच नहीं किया | इस प्रकार हमारे संविधान निर्माताओं ने अन्य संवैधानिक परम्पराओ से कुछ ग्रहण करने से भी कोई परहेज नहीं किया | यह उनके व्यापक ज्ञान का प्रमाण है कि उन्होंने किसी भी ऐसे बौद्धिक तर्क या ऐतिहासिक उदहारण को अनदेखा नहीं किया जो उनके कार्य को सम्पन्न करने के लिए आवश्यक था | हमारे संविधान निर्माताओं ने विभिन्न देशों से अनेक प्रावधानों को भी लिया | लेकिन दूसरे देशों के संविधानों से उन विचारों को लेने का अर्थ यह नहीं था कि संविधान की नक़ल की | बल्कि बात इससे बिलकुल अलग थी | संविधान के प्रत्येक प्रावधान को इस आधार पर उचित सिद्ध करना था कि  वह भारत की समस्याओं और आशाओं के अनुकूल है |  यह भारत का सौभाग्य हीं था कि हमारे संविधान ने संकुचित दृष्टिकोण को छोड़कर सम्पूर्ण विश्व से सर्वोत्तम चीजों को ग्रहण किया और उन्हें अपनाकर अपना संविधान बनाया |

संसदीय शासन व्यवस्था

    संसदीय शासन व्यवस्था में प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है | प्रधानमंत्री विधायिका में बहुमतवाले दल का नेता होता है | वह विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता है | संसदीय गणतंत्र में राष्ट्रपति देश के प्रमुख होतें हैं और संवैधानिक राजतन्त्र में राजा देश का प्रमुख होता है | 

संघात्मक शासन 

    संघात्मक शासन उस प्रणाली को कहते हैं जिसमे राज्य-शक्ति संविधान द्वारा केंद्र तथा संघ की घातक इकाइयों के बीच विभाजित रहती है | संघात्मक राज्यों में दो प्रकार की सरकारें होती है -एक संघीय या केंद्री सरकार और कुछराज्यीय अथवा प्रांतीय सरकारें |  दोनों की सत्ता मौलिक रहती है और दोनों का अस्तित्व संविधान पर निर्भर रहता है |

स्वायत्त का अर्थ - जो किसी दूसरे के शासन या नियंत्रण में न हो, बल्कि अपने कार्यों का संचालन स्वयं करता हो |


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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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